India Capital Delhi 2024: भारत में हो रहे इस पोलुशन किलर को बेह्द कम लोग जानते है। पूरी रिपोर्ट यहाँ पर

India Capital Delhi 2024: एक बहुत ही खतरनाक महामारी हर साल लगभग 70 लाख लोगों की जान ले रही है, लेकिन कई लोगों को अब तक इसके बारे में पता नहीं है। हालाँकि covid-19 पिछले 4 सालों में 70 लाख लोगों की जान ले ली है और पूरी दुनिया इसे ग्लोबल थ्रेड घोषित करके ख़तम करने के पीछे लग गयी।

लेकिन यह किलर हर साल 70 लगभग लाख लोगो को मार रही है और कोई भी इस पर आवाज नहीं उठा रहा है। WHO भी पिछले 1 दशक से हमें इसके बारे में सतर्क करते आ रहे है

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Group Join Now

WHO भी पिछले 1 दशक से पब्लिकली रिलीज पैटर्न को ऑब्जर्व कर रहा था उन्होंने देखा कि हर साल करीब 70 लाख लोग किसी भी तरह के एक्सीडेंटल कॉसेस ना होने के बावजूद नेचरली बहुत ही कम उम्र में मर रहे हैं।

अचानक से आउट ऑफ द ब्लू उन्हें कोई घातक बीमारी हो जाती है और वह मर जाते है काम ही उम्र में इसमें  55% लोग हार्ट फेल्योर से मर रहे हैं 21% लोग रेस्पिरेट्री इनफेक्शन से मर रहे हैं 24% लोग बाकी के लैंड डिजीज से मर रहे हैं और इन सबके अलावा कुछ ऐसे केसेस है जैसे ब्रेन डैमेजिंग भो लोगों को हो रहे है।

अब इन सभी के पीछे की वजह को जानने के लिए WHO ने कुछ लोगों के घर के एनवायरमेंट को स्टडी किया तो पता चला कि उन सब के घरों में एक चीज बिल्कुल सामान थी यह सभी वह घर थे जहां पर या तो चूल्हे पर या तो केरोसिन स्टोर पर खाना बन रहा था, यानी उनकी मौत का कारण थी हवा साधारण घर की हवा धीरे-धीरे करके अंदर से ही खा रही थी और वह समय से पहले ही मर गए क्योंकि अभी हाल ही में जो दुनिया के टॉप 50 मोस्ट एयर पोल्यूटेड की लिस्ट आयी है उसमें 42 City अकेले इंडिया के थे।

India Capital Delhi 2024

इस टॉप 50 एयर पोल्यूटेड की लिस्ट में दिल्ली पूरे दुनिया का पॉल्यूशन कैपिटल बन कर बैठा हुआ है वो भी लगातार कई सालों से शुरू में जो आपने देखा की 70 लाख लोग मर रहे हैं हर साल उनमें से सबसे ज्यादा मरने वाले लोग भारत से ही है।

इसका पता लगने के लिए की मेच्योर डेट्स की वजह क्या है? इंडिया के कुछ रिसर्च ने कुछ आर्टिफिशियल लंग्स बनाएं जो बिल्कुल हमारे लंग्स जैसे ही काम करते थे और उन्हें इंडिया के टॉप पोल्यूटेड सिटीज जैसे लखनऊ बेंगलुरु दिल्ली वाराणसी इनमें प्लेस किया और इसका केवल 24 घंटे बाद ही आर्टिफिशियल लंग्स धीरे धीरे काले पड़ रहे थे दिल्ली में वह लंग्स 3 दिन में ही पूरे के पूरे काले हो गए।

लखनऊ में 5 दिन के अंदर बेंगलोर में 18 दिन के अंदर पूरे के पूरे काले हो गए। वहां के कुछ क्लिनिक में भी पता किया गया तो उन्होंने भी बताया की इन क्लीनिक में जितने भी लंग कैंसर के पेशेंट आते थे वह सब पहले से स्मोकर्स हुआ करते लेकिन आज गेम पूरा पलट चुका है जितने भी लंग कैंसर के पेशेंट आते हैं उनमें से अधिकतर 50% सारे के सारे नॉन-स्मोकर्स होते हैं जिन्होंने अपनी लाइफ में, अपनी पूरी जिंदगी में कभी भी सिगरेट को हाथ तक नहीं लगाया होता है।

लेकिन चिंता की बात तो यह है कि आज हालात और भी बुरे हो चुके है आज के समय में हर एक नॉन स्मोकर्स इंडियन चाहे वह एक जवान हो या  बच्चा  हर दिन लगभग 8-10 सिगरेट्स के जितना जहर को अपने अंदर ले रहा है बिना स्मोकिंग के जो की बेहद दुःख की बात है। आखिर भारत में पिछले 10 से 20 सालों में ऐसा क्या हो गया जो हवा की क्वालिटी यहाँ पर बत से बतर  हो गयी।

आज यह इंडिया पॉल्यूशन किलर के मामले में नंबर 1 बन गया है। उन लोगों का क्या जो इन बड़े पोल्यूटेड सिटीज के बाहर रहते है क्या वह लोग पूरी तरह सुरक्षित है या फिर वो भी जाने अनजाने में अपने आप को इसी तरह की गलतिया कर रहे है जैसा हमने पहले चूल्हे की केससेस में बताया।

इन सवाल के जवाबों के लिए हमें सबसे पहले यह समझने के लिए कुछ सवालों को देखना होगा जैसे-

  1. साफ हवा मेजर कैसे करते हैं?
  2. आपके एरिया की हवा आवृत्ति को मेजर करने के लिए साइंटिस्ट एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) कैसे करते हैं?
  3. आपके एरिया की हवा आप कैसे जान पाओगे की अच्छी है या नहीं?

हवा को मेजर करने के लिए साइंटिस्ट एयर क्वालिटी इंडेक्स एक (AQI) स्केल का प्रयोग करते हैं जो की जीरो से 500 तक का स्केल होता है जहां पर कम नंबर्स कम पॉल्यूशन को दर्शाते हैं और ज्यादा नंबर से ज्यादा एयर पॉल्यूशन को दर्शाते हैं।

हवा की जाँच करने के लिए हर State में कम से कम 2 और उससे अधिक एयर क्वालिटी स्टेशन बनाये जाते है। यह स्टेशन का काम Beta Attenuation Monitor (BAM) नाम का एक स्पेशल मशीन का सैटअप्स की मदद से उस पार्टिकुलर सिटी की हवा को खींचती हैं और फिर उनमें से जो जहरीली पार्टिकल्स है उन्हें काउंट करके उस एरिया की हवा की क्वालिटी को पता करती हैं।

India Capital Delhi 2024

उसमे एक फ्लैशलाइट लगी होती है जिससे बीटा रेडिएशन छोड़ती है और उसके सामने एक फिल्टर और एक डिटेक्टर लगा हुआ होता है फ़िल्टर जो बड़े पार्टिकल्स को छोड़कर सिर्फ पीएम 2.5 यानी कि 2.5 माइक्रोमीटर से छोटे पार्टिकल्स को ही अंदर आने देता है और फिर जब बीटा रेडिएशन इन पार्टिकल्स से टकराकर मिल जाते हैं और डिटेक्टर तक नहीं पहुंच पता है तो उसे डिटेक्टर कैलकुलेट करता है की हवा में पीएम 2.5 पार्टिकल्स का कंसंट्रेशन कितना है और फिर एक बार यह कंसंट्रेशन का पता चल गया तो फिर उस हवा को 0 से 500 की स्केल पर देखा जाता है। जिसे की AQI स्केल कहा जाता है। पार्टिकल्स का मेजरमेंट बहुत ही जरुरी होती है क्योंकि यही हवा पॉल्यूशन करती हैंIndia Capital Delhi 2024

इसे एक उदाहरण से समझते हैं अगर एक मीटर यानी की वाशिंग मशीन जितने वॉल्यूम में 12 से कम माइक्रोग्राम पार्टिकल्स है तो AQI स्कोर 0 से 50 के बीच में होगा और हवा की क्वालिटी काफी अच्छी मानी जाएगी। अगर 12 से 35 माइक्रोग्राम पार्टिकल्स है तो स्कोर होगा।

51 से 100 है तो हवा की क्वालिटी अच्छी मानी है अगर 35 से 55 माइक्रोग्राम पार्टिकल्स होंगे तो स्कोर 101 से 150 होगा और ऐसी हवा सेंसिटिव लोगों पर अपना असर दिखाना शुरू कर देगी अगर आपको कोई अंडरलाइन रेस्पिरेट्री प्रॉब्लम्स अस्थमा वगैरह हो गया तो अंदर से घुटन होना शुरू हो जायेगा यदि 55 से ज्यादा माइक्रोग्राम पार्टिकल्स है तो स्कोर 150 के पार चला जाएगा जिसके बाद यह हवा हम जैसे नॉर्मल लोगों के लिए भी हानिकारक होना शुरू हो जाएगी।

आप सोच के देखो की पिछले साल दिल्ली का AQI 999 टच कर गया था यह पहली बार एयर क्वालिटी 999 टच कर गया था जो की एक गैस चैंबर की तरह हो गया था। तो भारत के कैपिटल सिटी में रह लोग किस लेवल की जहरीली हवा ले रही है।

यदि देखा जाय तो पीएम 2.5 पार्टिकल्स को लेना एक सिगरेट के बराबर है तो अगर आप मुंबई में रह रहे हो तो आप कम से कम 2 से 3 सिगरेट जितनी टॉक्सिंस को ले रहे हो और दिल्ली, गुड़गांव में 4 से 5 सिगरेट उतना जहर अंदर जा रही है।

डॉ अरविंद कुमार जो की चेयरमैन ऑफ़ द इंस्टिट्यूट ऑफ़ के सर्जरी एंड लंग ट्रांसप्लांटेशन है उनके कहने में तो 300 से 350 सौ का एक युवा है 10 से 15 सिगरेट स्मोक करने के बराबर है और दिल्ली में कई महीने AQI आसानी से इतना टच कर ही जाता है।

डॉक्टर अरविंद कुमार के ही प्रैक्टिस में जब वह लंग्स ऑपरेशन के लिए छाती को खोलते हैं तो उन्हें सिर्फ और सिर्फ काले फेफड़े ही दिखते हैं आज की तारीख में टीनएजर्स ही नहीं बल्कि उनके कहने में आज के न्यू बोर्न बेबीज को भी आसानी से स्मोकर्स के कैटिगरीज किया जा सकता है।

इतना पोल्यूटेड माहौल हो गया और इसीलिए अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो आगे चलकर हमारे मेडिकल सिस्टम पर एक बहुत ही बड़ा बोझ ला सकता है क्योंकि उसके लिए हमारा मेडिकल सिस्टम तैयार नहीं है आज इंडिया में गवर्नमेंट डॉक्टर्स की बहुत बड़ी कमी चल रही है फ़िलहाल की ऑफिशियल रिपोर्ट के हिसाब से इंडिया में स्पेशलिस्ट डॉक्टर की 80% शॉर्टेज मेडिकल एस्पिरेशनल प्रोफेशन होने के बावजूद इंडिया में इसका सिलेक्शन रेट सिर्फ 6.5% है क्योंकि एग्जाम्स वन ऑफ़ द टफेस्ट एग्जाम्स होते हैं।

एयर पॉल्यूशन इंडिया में कितना बड़ा खतरा है इसके बारे में तो हमें एक अंदाजा सा आ गया लेकिन आखिर यह पीएम 2.5 पार्टिकल सी स्पेशली इतनी खतरनाक क्यों होते हैं मेजर्ली उनके विशेष परी हवा की क्वालिटी को नापी जाती है तो देखो जितने भी कंपाउंड्स हमारे शरीर के लिए टॉक्सिक होते हैं जो पेट्रोल, डीजल, कोयला, रबर,प्लास्टिक इनको जलाने से रिलीज होते हैं वह मोस्टली 2.5 माइक्रोमीटर या उससे छोटा ही होते हैं जिसके वजह से वह आसानी से हमारे शरीर के अंदर प्रवेश कर जाते हैं और हमारे जो विटल ऑर्गन्स है उन्हें डैमेज करते हैं, और हमारे जो विटल ऑर्गन्स है उन्हें डैमेज करते हैं।

दरअसल हमारे अंदर उत्तल-पुथल मचा देते है साइंटिफिक प्रूफ से यह हार्ट अटैक कोर्स कहते हैं ब्रेन डैमेज लग और ब्रेस्ट कैंसर रेस्पिरेट्री डिसीसिस और यहां तक की होने वाले बच्चों में भी डिफॉम्रिटीज पैदा करते है।

रिसर्च में यह डिस्कवर हुआ की 1990 से 2013 के बीच 188 देशों में वन थर्ड केसेस हार्ट अटैक के पीछे एयर पॉल्यूशन का अधिक रोल बताया है।

डेवलपिंग इंडिया में एवरेज 30% हार्ट अटैक एयर पॉल्यूशन से बढ़ रहा है यूनिवर्सिटी के रिसर्च में यह सामने आया कि हर 10 माइक्रोग्राम पर मीटर क्यूब के पीएम 2.5 बढ़ने पर 12 से 14% तक हार्ट की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

फॉर एग्जांपल मुंबई में 55 का एवरेज चलता है यानी हार्ड डिजीज के चांसेस 50% बढ़ जाते हैं जबकि दिल्ली में इसका भी डबल हो जाता है कि एयर पॉल्यूशन से हुए मौत में से ऑलमोस्ट 70% मौते हार्ड की वजह से और बाकी के 28% सिर्फ रेस्पिरेटरी प्रॉब्लम से हुई है। डेवलपिंग देश इंडिया में पीएम 2.5 लेवल्स उस नेशनल एंबिएंट से एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड 10 गुना ज्यादा हैं।

उदाहरण के लिए दिल्ली और मुंबई एयर क्वालिटी पॉल्यूशन से हमारे हार्ट के आर्टिरीज में ब्लैक तेजी से बिल्ड अप होने लगता है और वह समय हार्ड हो जाते हैं जो पहले बताएं हार्ट प्रॉब्लम्स को ट्रिगर करते हैं लॉन्ग कैंसर अगला बड़ा खतरा के मुकाबले अस्थमा से सफर करने वाले पेशेंट सबसे ज्यादा बढ़ जाते है।

एकदम आसान शब्दों में कहे तो लक्स डैमेज होते हैं जिन्हें रिपेयर करने वाले जींस जैसे एपिडेरमल ग्रोथ फैक्टर रिसेप्टर ईगफ्रन में म्यूटेशंस आ जाते हैं और वह अनकंट्रोलैबली अबनॉर्मल ग्रो होने लग जाते हैं और वह ठीक से काम नहीं कर पाते और इसकी वजह से ऑक्सीजन सप्लाई भी नहीं कर पाएंगे तो ऑक्सीजन की कमी से हार्ट स्ट्रोक इन स्टॉक आने में भी ज्यादा वक्त नहीं लगेगा।

हमें बहुत सारे रिसर्च मिले जो एयर पॉल्यूशन के दिमाग पर हार्मफुल इफेक्ट्स को प्रूफ करते हैं 2012 की स्टडी ने यह प्रूफ किया कि पोल्यूटेड सिटीज के बच्चों के इन जनरल लॉस कोर्स आए मेमोरी और इंटेलिजेंस टेस्ट यूनिवर्सिटी ऑफ़ वाशिंगटन की एक स्टडी ने यह डिस्कवर किया कि 2 से 4 साल की उम्र के बच्चे अगर पोल्यूटेड एनवायरमेंट में एक्सपोर्ट होते हैं तो वह उनके ब्रेन के डेवलपमेंट को इफेक्ट करता है

डेनमार्क की स्टडी में एयर पॉल्यूशन के लेवल एक्स्पोज़र से एडल्ट्स में डिप्रेशन का रेट 50% से बढ़ गया पर्सनैलिटी डिसऑर्डर्स 162% और शिजोफ्रेनिया का रिस्क 148% दिमाग पर असर डालता है यहां तक पोल्यूटेड सिटीज के अनबॉर्न बेबीस के ऑर्गन्स में तक पॉल्यूशन के ननोपार्टिकल्स मिले जो उनके नॉर्मल डेवलपमेंट को इफेक्ट कर रहे हैं और पैदा होने से पहले ही कॉम्प्लिकेशन जिसके पीछे सिंपल मेकैनिज्म में एयर पॉल्यूशन के हार्मफुल पार्टिकल्स ब्लड ब्रेन बैरियर को क्रॉस करके क्रॉनिक इन्फ्लेमेशन क्रिएट करते हैं जो इन्हीं पार्टिकल्स के साथ मिलकर न्यूरॉन्स को डैमेज करती है।

जैसे हाई ब्लड प्रेशर डायबिटीज, इन्फ्लेमेशन, कोलेस्ट्रॉल, इश्यूज ,किडनी और लिवर फंक्शन कैंसर और भी बहुत सी साइलेंट किलर है जो हर साल लाखों इंडियन को मार रहा है

ये कैसे और कहा से शुरू हुआ?

कुछ साल पहले पंजाब और हरियाणा में चावल और गेहूं की खेती एक साथ होती है और इस प्रक्रिया में ग्राउंडवाटर पूरी तरह से ख़त्म हो रहा था तो वहां की गवर्नमेंट ने एक कानून पास किया उसमे ये था की अक्टूबर यानी की बारिश में चावल की खेती होगी और गेहूं की खेती उसके बाद करने की हुई

गेहूं पर ट्रांसलेशन करने के लिए किसानों को सिर्फ एक ही महिना मिल रहा था तो जल्द से जल्द ट्रांजैक्शन करने के लिए बरेली जलने लगे और स्पेसिफिकली दिल्ली की यूनिक जियोग्राफी के वजह से उसकी धुँवा दिल्ली में आकर रुकने लगता है और बस यही वजह है कि दिल्ली का AQI हर साल के लिए नवंबर में 500 टच करके लोगों की जान ले रही है।

इसके अलावा दिल्ली क्योंकि नेशनल कैपिटल है और इंडिया के एकदम सेंटर में आता है तो यहां पर ट्रैफिक भी दूसरे सिटी से मुक़ाबलेल में काफी ज्यादा है कंस्ट्रक्शनमिनिस्ट्री ऑफ़ रोड ट्रांसपोर्ट एंड हाईवेज के अनुसार पिछले 10 सालों में इंडिया में नेशनल हाईवे 60% तक बढ़ गयी है उसी के साथ जगह-जगह में मेट्रो का काम भी चालू है स्मार्ट सिटीज बना रहे हैं मॉन्यूमेंट्स बना रहे हैं बृजेश बना रहे हैं। और जहां पर कुछ नहीं बचा वहां पर अंडरग्राउंड केबल्स डालने के लिए रास्ते खोज रहे हैं पाइपलाइन का एलपीजी लाइंस डालने और उनकी मरम्मत के लिए खुदाई चल रही है अब एनवायरमेंट प्रोटक्शन एजेंसी के अनुसार कंस्ट्रक्शन में जो हैवी गाड़ी इस्तेमाल होती है और जो तार यानी डाबर पिघलाया जाता है जिससे स्टील रॉड बनाए जाते हैं उसे हर साल करीब 25 से 40% ज्यादा कार्बन निकलता है

एक यूआईडी डेवलपिंग सिटीज ऑफ़ इंडिया के एक रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में लगभग उतनी ही गाड़ियां है जितने पूरे यूरोपीय कॉन्टिनेंट में और इंटरनल एनर्जी एजेंसी के अनुसार क्वालिटी करीब गाड़ियों से सबसे ज्यादा कार्बन मोनोऑक्साइड नाइट्रोजन ऑक्साइड हाइड्रोकार्बन ऐसे टॉक्सिक केमिकल्स रिलीज होते हैं वही के एक रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में लगभग उतनी ही गाड़ियां है जितने पूरे यूरोपीय कॉन्टिनेंट में और इंटरनल एनर्जी एजेंसी के अनुसार अकेले रोड ट्रांसपोर्ट से ही एयर क्वालिटी करीब हो जाती उनका कहना यह है की गाड़ियों से सबसे ज्यादा कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन ऐसे केमिकल रिलीज होते हैं जो की पीएम 2.5 के कैटेगरी में आती है तो हमारे देश में जितनी भी गाड़ी है उसे देश की हवा को और टॉक्सिक बना रही

इंडिया  के इस इंदौर में इतने डेवलपमेंट के बाद भी करीब 10 करोड़ घरों में आज भी खाना चूल्हे पर बनता है और जैसे कि हमने पहले जाना चूल्हा जलाने के लिए लकड़ी है जिससे कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर ऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे कई केमिकल्स निकलती हैं।

अकेले ही इस इंदौर एयर पॉल्यूशन की वजह से हर साल करीब 3 से 4 लाख लोगों की समय से पहले ही मौत हो जाती है इस पर विचार कर के देखिये की इस इंदौर एयर पॉल्यूशन का इंडिया की लोअर क्वालिटी में कितना ज्यादा पॉल्यूशन कर रही है लेकिन इसमें काफी समय लगने वाले है इंडियन गवर्नमेंट को क्लीन एयर एक्ट पास करने में। इस एक्ट की बिल्कुल जरूर है।

पर्सनली राइट टू क्लीन एयर तो हर इंसान का एक फंडामेंटल राइट होना चाहिए क्लीन वाटर की तरह क्योंकि पानी के बिना तो हम साथ दिन जिंदा रह सकते हैं लेकिन हवा के बिना तो हम 10 मिनट भी नहीं टिक सकते तो ऐसे फंडामेंटल चीज को सीरियसली क्यों नहीं लिया जा रहा है एक्सट्रीमली कम लोग हैं जिन्हें इसके सीरियसनेस का कोई अंदाजा भी नहीं होगा और ऐसा करके हम अपने ही हेल्थ के साथ खेल रहे हैं।

हम अपने डेली लाइफ में इतना भूल चुके हैं कि हम यह सिंपल सी बात भूल चुके हैं की जान है तो ही जान और खुद के हेल्थ की चिंता करना सबसे पहले हमारी खुद की रिस्पांसिबिलिटी है सरकार इन चीजों पर जब एक्शन ले तब ले पर आज हम अपने लेवल पर भी कई स्टेप्स ले सकते हैं इस कहर से खुद को और गरीबों को बचाने के लिए हमने इस कहर से बचने के कुछ मेजर सॉल्यूशंस निकाले हैं जो आप फॉलो कर सकते है और अपने आप को इससे प्रोटेक्ट करने के लिए सबसे पहले तो हमें अपने लेवल पर यह देखना चाहिए कि हम जिस एरिया में रहते हैं वहां का AQI क्या है?

एयर पॉल्यूशन इंडिया को कैसे बचाये?

अगर आपके एरिया का AQI 12 से 25 के ऊपर है तो कुछ खास उपाय आगे दिया गया जिसे आप अपना कर इससे खुद को और दुसरो को भी बचा सकते है-

  • आप पब्लिक में जितना हो सके मास्क पहनकर रहे अगर मास्क नहीं है तो सिंपली अपनी रुमाल को भी यूज़ कर सकते हैं यह सिंपल सा स्टेप हवा में मौजूद 95% पार्टिकल्स को फिल्टर आउट करेगा।
  • इंक्लूडिंग पीएम 2.5 पार्टिकल्स या किसी फैक्ट्री के करीब रहते हो तो आप एक सिंपल से एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल कर सकते है ताकि आपके घर की हवा को क्लीन करेगा।
  • अगर आप ऑफिस कार से ट्रैवल करते हो तो आप अपने दोस्त के साथ मिलकर एक ही कार में साथ जा सकते है इससे फ्यूल के भी पैसे बचेंगे और पॉल्यूशन भी कम होगा
  • जितना भी हो सके प्राइवेट व्हीकल अवॉइड करें और पब्लिक ट्रांसपोर्ट को प्रेफर करें
  • अपने घर में और अपने सोसाइटी में जितना हो सके पेड़ या पौधे को लगाए और ग्रीनरी को बढ़ाये। क्योंकि प्लांट्स हवा में एयर पोल्यूटेंट्स को सोकर नेचरली और को प्यूरिफाई करते हैं।

Leave a Comment